Friday, March 09, 2012

क्या तुम्हारी बात हो ?

ज़िन्दगी में 'कुछ हो',
तो - बात हो |

माटी से मंजिलें बना सको,
तो -तुम कुछ बात हो |
उजले चेहरे तो तमाम हैं,
एक सरल सच्ची मुस्कान हो,
तो -उम्दा बात हो |
चीर सागर मच्छी ला सको,
तो - एक करामात हो |
मोड़ आते हैं, पड़ाव आते हैं,
रस्ते का साथ फिर भी दे पाओ,
तो -तुम्हारी बात हो |

साल तुम्हारे घर में गुजरे,
चद्दर और बर्तन बदलते;
खून तुम्हारा विश्व बदल जाए,
इस लिए - माँ तुम्हारी बात हो |
जंग में लथपथ हो बदन ,
रूह, फिर भी भी ललकार लगाए,
इस लिए - सिपाही तुम्हारी जयकार हो |

आवाजों का शोर हैं हर मस्तिष्क में,
बातों से दिल पिघला सको
तो -तुम्हारी बातों की बात हो |
झूठ की लहरें बुलंद हैं,
सच्चे निशाँ कुछ छोड़ जाओं
तो- तुम प्रेरेना की बात हो |

इस पल कुछ न हों,
बस यूँ ही बिंदास हों,
तो - तुम उत्साह की बात हो |
ज़िन्दगी में 'कुछ हो',
तो - बात हो |

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