Wednesday, January 06, 2010

Pool Side

Woke up early this morning and wrote this sitting on the pool side bench..few thoughts.

मोर पंख को लहू में डुबाता हैं,
पाटी पर निशाँ क्यों नहीं आता हैं !
कोई समझा दो उसे,
उस दिल का खून सफ़ेद हो जाता हैं,
दर्द और प्यार जहां लुप्त हो जाता हैं !

पानी को लगा चाँद उसके अन्दर हैं,
पत्थर ने प्रतिबिम्ब बेध कर सच प्रदर्शाया
चाँद को सितारों के साथ चलना हैं !
पानी को पत्थर के साथ बहना हैं !
प्रतिबिम्ब = reflection

आगे बढ़ने के ख्यालों में,
सपने पीछे छूट गयें !
ऊँचे उठने की दौड़ में ,
दोस्त नीचें छूट गयें !

Adios
-Anuj Lakhotia

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