Woke up early this morning and wrote this sitting on the pool side bench..few thoughts.
मोर पंख को लहू में डुबाता हैं,
पाटी पर निशाँ क्यों नहीं आता हैं !
कोई समझा दो उसे,
उस दिल का खून सफ़ेद हो जाता हैं,
दर्द और प्यार जहां लुप्त हो जाता हैं !
पानी को लगा चाँद उसके अन्दर हैं,
पत्थर ने प्रतिबिम्ब बेध कर सच प्रदर्शाया
चाँद को सितारों के साथ चलना हैं !
पानी को पत्थर के साथ बहना हैं !
प्रतिबिम्ब = reflection
आगे बढ़ने के ख्यालों में,
सपने पीछे छूट गयें !
ऊँचे उठने की दौड़ में ,
दोस्त नीचें छूट गयें !
Adios
-Anuj Lakhotia
Wednesday, January 06, 2010
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