एक फितरत और देखि वक़्त की
खामोश हैं पर मुस्तैद हैं
खुशियाँ उडाऊं तो पकड़ ले
अश्रु गिराऊं तो चुन ले
सब कुछ समेत लेता हैं
मैं उडूं तो यह दौड़े
मैं ठहरूं तो यह थमें
एक मुकाबला करता हैं |
संग इसके खेल में ,थोडा हुनर सीख लिया
इस के कुछ रहस्यों को भेद दिया
इसके कुछ दिनों को छुपा दिया
कुछ रातों की बाहों में खेल लिया
लम्हे थे कुछ इसके, नाम अपना लिख दिया
जब जब इसकी सरहद को न पार कर सकें
इसे लफ़्ज़ों में गिरफ्तार कर लिया |
These lines were written expressing a different perspective for a few lines written on time by a friend.
Adios
Anuj Lakhotia
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