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Thursday, May 31, 2012

Time and me


एक फितरत और देखि वक़्त की
खामोश हैं पर मुस्तैद हैं
खुशियाँ उडाऊं तो पकड़  ले
अश्रु गिराऊं तो चुन ले
सब कुछ समेत लेता हैं
मैं उडूं तो यह दौड़े
मैं ठहरूं तो यह थमें
एक मुकाबला करता हैं |

संग  इसके खेल में ,थोडा हुनर सीख लिया
इस के कुछ  रहस्यों को भेद दिया
इसके कुछ दिनों को छुपा दिया
कुछ रातों की बाहों में  खेल लिया
लम्हे थे कुछ इसके, नाम अपना लिख दिया
जब जब इसकी सरहद को न पार कर सकें
इसे लफ़्ज़ों  में गिरफ्तार कर लिया |

These lines were written expressing a different perspective for a few lines written on time by a friend.

Adios
Anuj Lakhotia